मेरे घर के सामने
सड़क के उस ओर
खड़ा हरा-भरा वृक्ष
सांस लेते रहने की
जद्दोजहद में,मौन खड़ा है
कल, परसों, जल्दी ही
निर्जीव होना है ...!
चीं-चीं करती चिड़िया
आराम फरमाते पथिक
झूलती लताओं से
खेलते नन्हे बच्चे
सदियों से खड़ा
तूफानों के थपेड़े सहकर
दशकों से मजबूत खड़ा
पर,अब अस्तित्वहीन होगा
हरियाली नोच,
कंक्रीट जंगल तैयार होगा
बनेंगी गगनचुंबी इमारतें
प्रलोभन की आड़ में
दरकिनार होंगे
सरकारी नियम
बेबस वृक्ष को अनदेखा कर
मेज़ के नीचे से
सब सेंटल हो गया है.....
कई संस्थाएं सर उठाएगी
पेड़ बचाओ, पेड़ लगाओ नारे
कुछ दिन खूब लगेंगे
फिर सब मौन होगा
बिल्डर सेंटल करेगा
बुल्डोजर चलेगा
रहेंगी यादें हरे-भरे वृक्ष की
सांस लेने की अनुमति मांग
जो गिड़गिड़ाता रहा......!!
बबिता ओबराय, धर्मशाला,कांगडा, हि. प्र.