हमें यक़ीन है पक्का ज़रूर निकले गा।
अँधेरा चीर के इक रोज़ नूर निकले गा।।
उसे ए दैरो हरम जाके ढूंढ ने वाले।
तू चीर क़ल्ब को उसका ही नूर निकलेगा।।
तजल्ली दे खी जो उसकी तो जल के ख़ाक हुआ।
कहाँ पता था के दिल कोहे तूर निकलेगा।।
जिसे भी देखो वो मे पिए बग़ैर यहाँ।
तिरे ही जलवों के नश्शे में चूर निकलेगा।।
ये मुन्सिफ़ों की ख़ुशामद अदालतों का हुजूम।
हमें पता है हमारा क़ुसूर निकलेगा।।
ये तेरी मर्ज़ी के ऊपर ही सब मुनहस्सिर है।
अगर निकलेगा दिल से फ़ितूर निकलेगा।।
ए "राज़" रास्ता सच्चाई का ही चुनना फ़क़त
ये रास्ते पे चलेगा तो दूर निकलेगा।।
अलका "राज़ "अग्रवाल, भोपाल, मध्यप्रदेश