वो दर्द भी बेहिसाब था
वो समय भी बेहिसाब था
जो बात कभी कही नहीं
उस बात पर सवाल था।
जो बात दफन कर दिया
उन बातों मे जबाब थे
किससे कहते मन की बात
हर आँख मे सवाल था।
वो लोग बेनक़ाब थे
उनकी बात बेमिसाल थी
वो दर्द भी बेहिसाब था
वो समय भी सवालेदार था।
वो रात भी कुछ अजीब थी
वो दिन बड़ा अजीब था
तब सास क्यों रुकी नहीं
ज़ब ये सब दृश्य सामने था।
ये जीवन भी क्या जीवन है
जो जीवन मरने क़ो आतुर हो
वो आँखे भी क्या आँखे है
जो दर्द की गगरी सी भरी हैं।
पूनम त्रिपाठी,
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश