नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश जैसे उर्वरकों का भारत में अनाज उत्पादन के लिए खूब उपयोग होता है। लेकिन, उर्वरकों के अवशेष मिट्टी, भूजल और हवा में घुलकर पर्यावरण प्रदूषण का कारण बनते हैं। वैज्ञानिकों ने अब धान में कुछ ऐसे जीन्स और लक्षणों पता लगाया है, जो पौधों में फॉस्फोरस और नाइट्रोजन उपयोग की दक्षता को बढ़ा सकते हैं। इससे नई किस्में विकसित की जा सकती हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि पौधों में ग्रहण करने की दक्षता बेहतर होगी, तो अधिक मात्रा में उर्वरक उपयोग नहीं करने पड़ेंगे। ऐसे में, पर्यावरण, फसलों और मानव स्वास्थ्य को नुकसान नहीं होगा। गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के प्रो. नंदुला रघुराम के नेतृत्व में यह शोध भूमिका मदान द्वारा किया गया है।
प्रोफेसर रघुराम बताते हैं, खेती में उपयोग होने वाले केवल 25-30 फीसदी उर्वरकों का लाभ फसलों को मिलता है, जबकि इसका बाकी हिस्सा पर्यावरण में रिसकर नष्ट हो जाता है, जिससे हमारा स्वास्थ्य एवं जैव विविधता प्रभावित होती है और जलवायु परिवर्तन का खतरा भी बढ़ता है।
शोधकर्ताओं ने तीन लोकप्रिय धान की किस्मों में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस के उपयोग की दक्षता की तुलना की है। उन्हें 12 लक्षणों और 5 सामान्य जीन्स का पता चला है, जिससे फसल सुधार में मदद मिल सकती है। उन्होंने यह भी पाया कि पूर्वी तटीय भारत से सीआर धान-301 में नाइट्रोजन और फॉस्फोरस के उपयोग की दक्षता सबसे अधिक है। इसके बाद, क्रमशः पश्चिमी तटीय और दक्षिणी भारत के पनवेल-1 और सांबा मसूरी (बीपीटी 5204) में इस तरह की दक्षता पाई गई हैं।