उम्मीदों के दामन थामे राह ताकती है मंज़िल हार मान ले जब साहस ही मरती आशा तब तिल-तिल

 पड़े राह में पत्थर बोलो किसे ज़रा भी भातें हैं

 पर विधना सँग संधि पत्र का पूरा फ़र्ज़ निभातें हैं

वेग नदी का बांँध तोड़ दे तब आती सैलाबे हैं ,

यही हौसला अंतस जिनसे पूरे होते सपने हैं

 रहे हाथ में हाथ लिए जो उनकी क़िस्मत में मुश्किल ,

हार मान ले जब साहस ही मरती आशा तब तिल तिल ।


माँ मृग, मृग छौने की ख़ातिर महावीर से भिड़ जाती 

करती कब परवाह प्राण की मातृ प्रेम में लड़ जाती

 ऐसा जज़्बा दिल में जिनके क़दम सफलता चूमे है,

 दरवाज़े पर दस्तक उनके भाग्य झुका सिर झूमे है।

 भाष्य प्रयासों की जिसने भी जानी गया वही है खिल,

हार मान ले जब साहस ही मरती आशा तब तिल तिल।


सूरज का तेजस्व देखकर निशा कभी क्या डरती है,

 अपने तम से ढक कर सूरज दंभ सांँझ का भरती है।

 कग कोयल के बच्चों को निज यथा समझकर पाले है,

 है समर्थ कब 'ज्योति' सर्प में जो उन बच्चों को खाले है।

 निज बच्चों सा प्रीत लक्ष्य से करें उन्हें है जाती मिल,

हार मान ले जब साहस ही मरती आशा तब तिल तिल।


                                 ज्योति जैन

                          कोलाघाट,पं बंगाल।