कुसमी के दरवाजे पर भीड़ जमा थी।लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे।भीमा- “क्या जरूरत थी सारट- कट रस्ते से घर आने की? मार उधर झाड़ झंकार,जंगल सब है ;काट लिया जहरीले सांप ने”!
सुरती साहू ने खैनी मलते हुए कुसमी के पिता मिश्रीलाल को ढाढस बंधाया -”जी ना छोटा करो खबर पैठा दिए हैं भगत जी को, उनके हाथ में तो जादू है। भजन चाचा के बिटवा को पार साल नाग सांप काटे घंटा हो गया था।लड़के की दो-तीन सांस ही बची होगी,भगत बाबा ने दो जड़ी बूटी खिलाया मंतर फूंका और भोर होते-होते लइका चंगा होकर बैठ गया”।
मिश्रीलाल ने आंसू पोंछते हुए इधर-उधर देखा और तनिक नज़र नीची करके बोला- “नहीं नहीं हमार विनती है कि हम अपन बिटिया के शहर के अस्पताल में इलाज करें के ले जाएंगे आप सबसे पराथना है कि हम लोगों को थोड़ी देर छोड़ देव”।
कुसुम अंदर के कमरे में मां के पास है ओसे मिले के फायदा भी नहीं, काहे बहुत तड़प रहल है। ऐसा सुनकर भीड़ छँट गई। एंबुलेंस में कुसमी जो शहर गई तो दो हफ्ते में लौटी और हफ्ता भर बाद जब स्कूल जाने निकली तब सब हैरान रह गए! ना आंख में काजल, न छोटी झुमकी और बिंदी छींटदार फ्रॉक की जगह पूरे बाजू की सलवार, कुर्ती,ओढ़नी और तेल लगाई दो चोटी!
उसकी खिलखिलाहट,प्रणाम चाचा और पायल लागू दद्दा भी नहीं सुनाई दिए।सहपाठियों से नजरे चुराए वह कतरा कतरा कर निकलती गई,पीछे उसका छोटका भाई भी था। सब आपस में खुसुर- फुसूर करने लगे कुसमी को सांप ने ही काटा था ना…?बलखाती नदी अब सोते का शांत जल थी।
दीपाली रश्मि
सोहना,गुड़गांव हरियाणा
